Wednesday, 7 March 2018

भस्‍त्र‍िका प्राणायाम


भस्‍त्र‍िका प्राणायाम
भस्‍त्र‍िका संस्कृत शब्द भस्‍त्र से बना है, जिसका अर्थ है ‘धौंकनी’ । इस प्राणायाम में, जल्दी‑जल्दीऔर ज़ोर लगाकर अत:श्वसन और उच्‍छ्वसन द्वारा धौंकनी की प्रक्रिया की नकल करते हैं ।
भस्‍त्र‍िका प्राणायाम करें —
प्रारंभिक स्थिति — पदमासन, अर्धपदमासन या किसी भी ध्यानस्‍थ स्थिति में बैठें । शरीर को सीधा रखें ।आरामदायक आसन में सीधे बैठें।
1. अब नासाछिद्रों द्वारा बल लगाकर साँस
अंदर लें और बाहर छोड़ें । दोनों नाक के माध्यम से गहरी श्वास लें और तेजी से साँस छोडें।
2. श्वास पेट के मध्य और निचले भागों के इस्तेमाल से नाक के माध्यम से साँस छोडें।
3. बलपूर्वक साँस लेने और छोड़ने को दस की गिनती तक जारी रखें ।
4. अत में, श्‍वास बाहर छोड़ने के बाद गहरा श्‍वास लें और धीरे‑धीरे श्‍वास छोड़े । यह
भस्‍त्र‍िका प्राणायाम का एक चक्र है ।
निम्नलिखित बिंदुओ को याद रखें —
क्‍या करें क्‍या न करें
• प्रत्येक बार श्‍वास लेते और छोड़ते समय फेफड़ों, डायफ्राम और पेट को गतिशील करें ।
• छाती और कंधे नहीं हिलने चाहिए ।
• अत्यधिक गरम परिस्थितियों में यह अभ्यास न करें ।
लाभ-
• यह भूख में सुधार करता है ।
• यह कफ़ को नष्‍ट करता है ।
• यह अस्थमा में लाभकारी होता है ।
• यह रक्‍त प्रवाह में ऑक्सीजन और कार्बन डाइऑक्साइड के आदान-प्रदान में वदृधि करता है ।
•भस्त्रिका करने से फेफड़ों के लिए भरपूर मात्रा में ऑक्सीजन की आपूर्ति होती है।
• यह श्वसन प्रणाली के विकारों को हटा देती है | दक्षता में सुधार और चेतना की शुद्धता को बढ़ाती है |
•शरीर में गर्मी पैदा करता है और भूख बढ़ जाती है |
•भस्त्रिका पाचन तंत्र, मधुमेह, साइनस आदि के लिए उपयोगी है |
सीमाएँ(सावधानी-)
• हृदय रोगों, उच्च रक्‍तचाप, चक्कर आना, पेट के अल्सर से पी‍ड़त व्‍यक्‍त‍ियों को इस
प्राणायाम का अभ्यास नहीं करना चाहिए ।
•आप धौंकनी की अपनी प्रारंभिक प्रैक्टिस में श्वास बहुत दूर धकेलने के प्रलोभन से बचे |
•इसे अधिक मात्रा में करने से चक्कर आना, उनींदापन जैसी चीजें हो सकती है।

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