Wednesday, 21 March 2018

स्वास्थ्य सुजाव

स्वस्थ रहें

1-- 90 प्रतिशत रोग केवल पेट से होते हैं। पेट में कब्ज नहीं रहना चाहिए। अन्यथा रोगों की कभी कमी नहीं रहेगी।

2-- कुल 13 अधारणीय वेग हैं |

3--160 रोग केवल मांसाहार से होते है |

4-- 103 रोग भोजन के बाद जल पीने से होते हैं। भोजन के 1 घंटे बाद ही जल पीना चाहिये।

5-- 80 रोग चाय पीने से होते हैं।

6-- 48 रोग ऐलुमिनियम के बर्तन या कुकर के खाने से होते हैं।

7-- शराब, कोल्डड्रिंक और चाय के सेवन से हृदय रोग होता है।

8-- अण्डा खाने से हृदयरोग, पथरी और गुर्दे खराब होते हैं।

9-- ठंडे जल (फ्रिज) और आइसक्रीम से बड़ी आंत सिकुड़ जाती है।

10-- मैगी, गुटका, शराब, सूअर का माँस, पिज्जा, बर्गर, बीड़ी, सिगरेट, पेप्सी, कोक से बड़ी आंत सड़ती है।

11-- भोजन के पश्चात् स्नान करने से पाचनशक्ति मन्द हो जाती है और शरीर कमजोर हो जाता है।

12-- बाल रंगने वाले द्रव्यों (हेयरकलर) से आँखों को हानि (अंधापन भी) होती है।

13-- दूध (चाय) के साथ नमक (नमकीन पदार्थ) खाने से चर्म रोग हो जाता है।

14-- शैम्पू, कंडीशनर और विभिन्न प्रकार के तेलों से बाल पकने, झड़ने और दोमुहें होने लगते हैं।

15-- गर्म जल से स्नान से शरीर की प्रतिरोधक शक्ति कम हो जाती है और शरीर कमजोर हो जाता है। गर्म जल सिर पर डालने से आँखें कमजोर हो जाती हैं।

16-- टाई बांधने से आँखों और मस्तिश्क हो हानि पहुँचती है।

17-- खड़े होकर जल पीने से घुटनों (जोड़ों) में पीड़ा होती है।

18-- खड़े होकर मूत्र-त्याग करने से रीढ़ की हड्डी को हानि होती है।

19-- भोजन पकाने के बाद उसमें नमक डालने से रक्तचाप (ब्लडप्रेशर) बढ़ता है।

20-- जोर लगाकर छींकने से कानों को क्षति पहुँचती है।

21-- मुँह से साँस लेने पर आयु कम होती है।

22-- पुस्तक पर अधिक झुकने से फेफड़े खराब हो जाते हैं और क्षय (टीबी) होने का डर रहता है।

23-- चैत्र माह में नीम के पत्ते खाने से रक्त शुद्ध हो जाता है, मलेरिया नहीं होता है।

24-- तुलसी के सेवन से मलेरिया नहीं होता है।

25-- मूली प्रतिदिन खाने से व्यक्ति अनेक रोगों से मुक्त रहता है।

26-- अनार आंव, संग्रहणी, पुरानी खांसी व हृदय रोगों के लिए सर्वश्रेश्ठ है।

27-- हृदय-रोगी के लिए अर्जुन की छाल, लौकी का रस, तुलसी, पुदीना, मौसमी, सेंधा नमक, गुड़, चोकर-युक्त आटा, छिलके-युक्त अनाज औशधियां हैं।

28-- भोजन के पश्चात् पान, गुड़ या सौंफ खाने से पाचन अच्छा होता है। अपच नहीं होता है।

29-- अपक्व भोजन (जो आग पर न पकाया गया हो) से शरीर स्वस्थ रहता है और आयु दीर्घ होती है।

30-- मुलहठी चूसने से कफ बाहर आता है और आवाज मधुर होती है।

31-- जल सदैव ताजा (चापाकल, कुएं आदि का) पीना चाहिये, बोतलबंद (फ्रिज) पानी बासी और अनेक रोगों के कारण होते हैं।

32-- नीबू गंदे पानी के रोग (यकृत, टाइफाइड, दस्त, पेट के रोग) तथा हैजा से बचाता है।

33-- चोकर खाने से शरीर की प्रतिरोधक शक्ति बढ़ती है। इसलिए सदैव गेहूं मोटा ही पिसवाना चाहिए।

34-- फल, मीठा और घी या तेल से बने पदार्थ खाकर तुरन्त जल नहीं पीना चाहिए।

35-- भोजन पकने के 48 मिनट के अन्दर खा लेना चाहिए। उसके पश्चात् उसकी पोशकता कम होने लगती है। 12 घण्टे के बाद पशुओं के खाने लायक भी नहीं रहता है।

36-- मिट्टी के बर्तन में भोजन पकाने से पोशकता 100%, कांसे के बर्तन में 97%, पीतल के बर्तन में 93%, अल्युमिनियम के बर्तन और प्रेशर कुकर में 7-13% ही बचते हैं।

37-- गेहूँ का आटा 15 दिनों पुराना और चना, ज्वार, बाजरा, मक्का का आटा 7 दिनों से अधिक पुराना नहीं प्रयोग करना चाहिए।

38-- 14 वर्श से कम उम्र के बच्चों को मैदा (बिस्कुट, बे्रड, समोसा आदि) कभी भी नहीं खिलाना चाहिए।

39-- खाने के लिए सेंधा नमक सर्वश्रेश्ठ होता है उसके बाद काला नमक का स्थान आता है। सफेद नमक जहर के समान होता है।

40-- जल जाने पर आलू का रस, हल्दी, शहद, घृतकुमारी में से कुछ भी लगाने पर जलन ठीक हो जाती है और फफोले नहीं पड़ते।

41-- सरसों, तिल, मूंगफली या नारियल का तेल ही खाना चाहिए। देशी घी ही खाना चाहिए है। रिफाइंड तेल और वनस्पति घी (डालडा) जहर होता है।

42-- पैर के अंगूठे के नाखूनों को सरसों तेल से भिगोने से आँखों की खुजली लाली और जलन ठीक हो जाती है।

43-- खाने का चूना 70 रोगों को ठीक करता है।

44-- चोट, सूजन, दर्द, घाव, फोड़ा होने पर उस पर 5-20 मिनट तक चुम्बक रखने से जल्दी ठीक होता है। हड्डी टूटने पर चुम्बक का प्रयोग करने से आधे से भी कम समय में ठीक होती है।

45-- मीठे में मिश्री, गुड़, शहद, देशी (कच्ची) चीनी का प्रयोग करना चाहिए सफेद चीनी जहर होता है।

46-- कुत्ता काटने पर हल्दी लगाना चाहिए।

47-- बर्तन मिटटी के ही परयोग करन चाहिए।

48-- टूथपेस्ट और ब्रश के स्थान पर दातून और मंजन करना चाहिए दाँत मजबूत रहेंगे। (आँखों के रोग में दातून नहीं करना)

49-- यदि सम्भव हो तो सूर्यास्त के पश्चात् न तो पढ़े और लिखने का काम तो न ही करें तो अच्छा है।

50-- निरोग रहने के लिए अच्छी नींद और अच्छा (ताजा) भोजन अत्यन्त आवश्यक है।

51-- देर रात तक जागने से शरीर की प्रतिरोधक शक्ति कमजोर हो जाती है। भोजन का पाचन भी ठीक से नहीं हो पाता है आँखों के रोग भी होते हैं।

52-- प्रातः का भोजन राजकुमार के समान, दोपहर का राजा और रात्रि का भिखारी के समान।

Sunday, 18 March 2018

डायबिटीज के लिए करेले की पत्तियां कारगर इलाज

👉🏿डायबिटीज, दाद और एलर्जी से छुटकारा दिलाती हैं करेले की पत्तियां👈🏿

👉🏿 डायबिटीज के लिए करेले की पत्तियां कारगर इलाज है। इसकी पत्तियां खाने से शुगर का स्तर नियंत्रित रहता है। इसमें विसिन और पॉलीपेप्टाइड पी जैसे गुण पाये जाते हैं।*

👉🏿 करेला खाने में तो कड़वा होता है लेकिन यह हमारे शरीर के लिए बहुत ही हेल्‍दी होता है। यह एक औषधीय पौधा है। इसकी तासीर खुश्क होती है। करेला जितना गुणकारी होता है उससे कहीं ज्‍यादा उसकी पत्तियां फायदेमंद होती है। *आज हम आपसे करेला नहीं बल्कि इसकी पत्तियों के बारे में बात करेंगे। इस लेख के माध्‍यम से हम आपको बता रहे हैं करेले की पत्तियों के स्‍वास्‍थ्‍य लाभ के बारे में*

👉🏿करेला की पत्‍ती के फायदे---------👇🏾👇🏾

१👉🏿 डायबिटीज के लिए करेले की पत्तियां कारगर इलाज है। इसकी पत्तियां खाने से शुगर का स्तर नियंत्रित रहता है। क्योंकि इसमें विसिन और पॉलीपेप्टाइड पी जैसे गुण पाये जाते हैं जो ब्लड शुगर लेवल को नियंत्रण में रखता है।

२👉🏿 ऐसी बहुत सारी छोटी छोटी बीमारियां हैं जो मूलतः बैक्टीरिया, फंगल या वायरस से होती हैं। करेले के पत्तिओं में एंटी-माइक्रोबियल गुण होते हैं जो किसी भी तरह के त्वचा और पेट सम्बन्धी बीमारी नहीं होने देती हैं।

३👉🏿 करेले की पत्तियों में विटामिन ए, विटामिन सी और विटामिन बी कॉम्प्लेक्स अच्छी मात्रा में पाया जाता है। जिससे प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत होती है। विटामिन ए और विटामिन सी अच्छे एंटी ऑक्सीडेंट्स हैं जबकि विटामिन बी आपके शरीर के चयापचय ठीक रखता है।

४👉🏿 करेले की पत्तियों में प्रतिरक्षा प्रणाली को स्वस्थ और निरोगी रखने के गुण होते हैं। इसीलिए यह एचआईवी के वायरस को खत्म करने में सहायक है। क्योंकि एचआईवी का वायरस शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को खत्म कर देता है। जिससे व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है।रोजाना करेले की पत्तियां खाने से किसी भी तरह के कैंसर को ठीक किया जा सकता है।

५👉🏿  करेले की पत्तियाँ में मौजूद एंटी- कैंसर कम्पोनेंट्स कैंसर पैदा करने वाली कोशिकाओं में ग्लूकोस का पाचन रोक देते हैं जिससे इन कोशिकाओं की शक्ति ख़त्म हो जाती है और कैंसर की संभावना भी।

६👉🏿 करेले की पत्तियों के सेवन से मलेरिया का उपचार करने में मदद मिलती है। क्योंकि जितने भी कड़वे पत्तों वाले साग होते हैं वे मलेरिया जैसे रोगों से बचते हैं। इसमें एंटी इन्फ्लैमटॉरी और अस्ट्रिन्जन्ट के गुण होते हैं जिससे मलेरिया के बुखार को कम किया जा सकता है।

७👉🏿 करेले के पत्ते का रस और गुलाब जल मिलाकर लगाने से दाद तुरन्त ठीक हो जाता है। क्योंकि इसमें शक्तिशाली एंटी-इन्फ्लमेशन गुण होते हैं जो दाद का संक्रमण बढ़ने नहीं देता ।

Saturday, 17 March 2018

देसी घरेलु उपचार

देसी घरेलु उपचार

*👨🏻👉🏿घर पर उगाएं ये पौधें, डायबिटीज जैसे कई रोगों से मिलेगा छुटकारा👈🏿👩🏻*

1👉🏿 यह पौधे बहुत ज्‍यादा जगह भी नहीं घेरते।तुलसी तनाव को दूर करने में काफी मदद करती है।डायबिटीज में करी पत्‍ता होता है लाभकारी।*

2👉🏿 खूबसूरती और उपयोगिता दोनों साथ-साथ मिलें तो, कहना ही क्‍या। आप चाहें तो अपने घर को खूबसूरत बनाने के लिए कुछ ऐसे सेहतमंद पौधों को अपने घर में लगा सकते हैं। इन पौधों से आपको खूबसूरती के साथ मिलेगा सेहत का खजाना। हमारे जीवन पेड़ पौधों का काफी महत्व है। इसलिए लोग अपने घर में एक छोटा हिस्सा बागीचे के लिए रखते हैं। आजकल घरों  में तरह तरह के फूलों व सब्जियों के पौधे लगाने का चलन है।इससे ना सिर्फ आपके घर की सुंदरता बढ़ती है ब्लकि आप सेहतमंद व निरोग भी रहते हैं।*

3👉🏿 आप अपने घर में आसानी से कई तरह के सेहतमंद पौधे भी उगा सकते हैं। जैसे तुलसी का पेड़ लगभग हर घर में पाया जाता है। कहीं लोग पूजा करने के लिए तुलसी का पौधा लगाते हैं तो कहीं कई रोगों से बचने के लिए इसे लगाया जाता है। तुलसी की ही तरह ऐसे कई पौधे हैं जो आपको सेहतमंद रखने में मदद करते हैं।*

👉🏿 आईए जानें इन सेहतमंद पौधों के बारे में--------👇🏾👇🏾👇🏾*

👉🏿तुलसी👈🏿
* तुलसी एक ऐसा पौधा है जो ज्यादातर घर के आंगन में पाया जाता है। इसको लगाने से आस पास का वातावरण कीटाणु रहित हो जाता है। इसके अलावा तुलसी वाली चाय पीने से सर्दी जुकाम में आराम मिलता है। इसका तेज एस्ट्रोन वाला स्वाद ताजगी भरी खुशबू आप को तनाव से उबारने में मदद करती है।

👉🏿पुदीना👈🏿
*घर में पुदीना लगाना काफी फायदेमंद है। पुदीना हाई और लो दोनों ही प्रकार के ब्लडप्रेशर को नियंत्रित करता है। इस कार्य के लिए पुदीने की चटनी और रस का उपयोग किया जा सकता है। गर्मी में अक्सर लू लगने की समस्या हो जाती है ऐसे में पुदीने की चटनी नियमित सेवन करने से इसकी आशंका कम हो जाती है।

👉🏿धनिया👈🏿
* सब्जी का स्वाद व खूशबू बढ़ाने के लिए हरी धनिया का इस्तेमाल किया जाता है। इसे आप अपने घर में भी उगा सकते हैं। हरी धनिया थकान मिटाने में सहायक है। विटामिन A से भरपूर धनिया मधुमेह में भी फायदेमंद है इसके सेवन से रक्त में इंसुलिन की मात्रा नियंत्रित रहती है। इसके साथ ही यह शरीर में बैड कोलेस्ट्रोल की मात्रा घटाने और अच्छे कोलेस्ट्रोल की मात्रा बढ़ाने में भी मदद करता है।

👉🏿करी पत्ता👈🏿
*करी पत्ते का ज्यादातर प्रयोग साउथ इंडियन खाने में होता है। इसके प्रयोग से खाने का स्वाद बढ़ जाता है। दाल में तड़का लगाने के लिए या सांभर बनाने में करी पत्ते का खूब प्रयोग किया जाता है। इसके अलावा यह डायबिटीज को नियंत्रित करने में भी मदद करता है। डायबिटीज के रोगियों को करी पत्‍ता जरूर खाना चाहिए।

Friday, 16 March 2018

Hight badane ke upaye

क्या आप अपनी लम्बाई(Hight) बडाना चाहते हैं अगर हाँ तो इस लेख को पड़कर आप अपनी लम्बाई बड़ा सकते हैं|

परिचय :

उम्र के अनुसार अगर शरीर की लम्बाई(lambai) न बढ़े तो हम उसे कद का छोटा होना या बौनापन कहते हैं। यह एक ऐसा रोग है जिसमें मनुष्य की मानसिक क्रिया उम्र के अनुसार ही ठीक रहती है लेकिन उसके शरीर का विकास ठीक से नहीं हो पाता जिसके कारण उसका शरीर छोटा रह जाता है।

कारण :

बौनापन अक्सर वंशानुगत होता है। यदि किसी के माता-पिता में यह रोग हो तो उसके बच्चों में यह रोग होने की पूरी संभावना होती है।
आइये जाने kad lamba kaise kare ,lambai badhane ke gharelu upay

उपाय :

1. चनसुर (चन्द्रशेखर, चिन्द्रका) :

★ शरीर की ऊंचाई (लम्बाई) बढ़ाने के लिये चनसुर 2.5 से 10 ग्राम प्रतिदिन सेवन करने से लम्बाई बढ़ती है।

★ चनसूर के बीजों का चूर्ण बनाकर दूध के साथ मिलाकर प्रतिदिन सुबह-शाम सेवन करने से शरीर की लम्बाई (lambai)में वृद्धि होती है।

2. प्याज : बाल अवस्था से ही प्याज और गुड़ का नियमित सेवन करने से यह शरीर की लम्बाई बढ़ाने में लाभकारी होता है।

3. अमर बेल (पीले धागे) : किसी पेड़ से अमर बेल उतारकर, छाया में सुखाकर एवं चूर्ण बनाकर रखें। इसे 1 से 3 ग्राम चूर्ण शहद के साथ मिलाकर प्रतिदिन लेने से कद बढ़ता है।

4. घी : 25 ग्राम घी लेकर उसे तेल के साथ गर्म करके 300 मिलीलीटर दूध छोंककर उतार लें और ठंड़ा करके उसमें खांड़ मिलाकर प्रतिदिन सुबह-शाम सेवन करें। इससे शरीर की लम्बाई बढ़ती है।

5. त्रिफला : “अच्युताय हरिओम त्रिफला चूर्ण “को प्रतिदिन लेने से कद बढ़ता है । 5 ग्राम चूर्ण प्रतिदिन सुबह-शाम लेने से कद बढ़ता है।

6.अश्वगंधा :हर बीमारी या स्वास्थ्य संबधित समस्या का इलाज आयुर्वेद से संभव है। हाइट बढ़ाने के लिए Ashwagandha एक प्रभावी आयुर्वेदिक नुस्खा है। 18 साल से बाद भी हाइट बढ़ाने के लिए 2 चमच्च ” अच्युताय हरिओम अश्वगंधा चूर्ण ” एक गिलास गाय के दूध में मिलकर रोजाना सोने से पहले पिए। ये हर्बल औषधि आप संत श्री आशारामजी आश्रमों और श्री योग वेदांत सेवा समितियों के सेवाकेंद्र से खरीद सकते है।

7.ताड़ आसन :
★ योग में ताड़ आसन होता है जिसको करकर आप अपने शरीर की लम्बाई अच्छी खासी बड़ा सकते हैं|
★ छोटे बच्चे और टीनेजर इस ताड़ आसन को रोज़ करे तो उनकी लम्बाई 6 फुट तक आसानी से हो सकती है|
★ ताड़ आसन को करने के लिए आपको सबसे पहले अपने दोनों हाथ ऊपर की और उठाने हैं और हाथ उठाते समय आपको सांस अन्दर लेनी हैं
★ ऐसा करने के साथ साथ आपको अपने पैर के पंजो में भी कुछ सेकंड के लिए खड़ा होना है और इसके बाद आपको सांस बाहर छोड़ते छोड़ते हाथ नीचे करने है और दोनों पैर के पंजो को वापस सामान्य अवस्था में लाना है!
★ इस प्रक्रिया को आप 10 -15 बार करे और इसे बढ़ातें चले जाएँ|
★ इस आसन को करने के साथ साथ आपको अपने आहार का भी ध्यान रखना है आपको अपने आहार में ज्यादा से ज्यादा फल और मेवे खाने है|
★ अगर रोजाना ताड़ आसन करेंगे और आहार में फल और मेवे खायेंगे तो आप अपने कद को काफी अच्छा कर सकते हैं|

8.नागौरी :
★ कद बढ़ाने के लिये सूखी नागौरी, अश्वगंधा की जड़ को कूटकर बारीक कर चूर्ण बना लें।
★ बराबर मात्रा में खांड मिलाकर किसी टाईट ढक्कन वाली कांच की शीशी में रखें।
★ इसे रात सोते समय रोज दो चम्मच गाय के दूध के साथ लें।
★ इससे दुबले व्यक्ति भी मोटे हो जायेंगे। कम कद वाले लोग लंम्बे हो सकते हैं।
★ इससे नया नाखून भी बनना शुरू होता है।
★ इस चूर्ण का सेवन करने से कमजोर व्यक्ति अपने अंदर स्फूर्ति महसूस करने लगता है।
★ इस चूर्ण को लगातार 40 दिन तक लेते रहें। इस चूर्ण को शीतकाल में लेने से अधिक लाभ मिलता है।

सावधानी—

इस चूर्ण का सेवन करते समय खटाई, तली चीजें न खायें और जिन्हें आंव की शिकायत हो, तो अश्वगंधा न लें।

9.खजूर:
* 1 से 2 ग्राम अश्वगंधा चूर्ण, 1 से 2 ग्राम काले तिल, 3 से 5 खजूर को 5 से 20 ग्राम गाय के घी में एक महीने तक खाने से लाभ होता है। साथ में पादपश्चिमोत्तानासन, ‘पुल्ल-अप्स’ करने से एवं हाथ से शरीर झुलाने से ऊँचाई बढ़ती है।

मनुष्य को अपने हाथ तथा पैरों के बल झूलने तथा दौड़ने जैसी कसरतों के अलावा भोजन में प्रोटीन, कैल्शियम तथा विटामिनों की जरूरत बहुत आवश्यक है तथा पौष्टिक भोजन करने से लम्बाई बढ़ने में फायदा मिलता हैं

Wednesday, 14 March 2018

गला ख़राब हो या कफ से छाती जाम हो

गला ख़राब हो या कफ से छाती जाम हो ,ये घरेलू उपचार कर देगा आपको पूरा ठीक*_

*भाई राजीव दीक्षित जी*

*गले में कितनी भी ख़राब से ख़राब बीमारी हो, कोई भी इन्फेक्शन हो, इसकी सबसे अच्छी दवा है हल्दी ।
जैसे ...
गले में दर्द है, खरास है , गले में खासी है, गले में कफ जमा है, गले में टोनसीलाईटिस हो गया ;
ये सब बीमारियों में आधा चम्मच कच्ची हल्दी का रस लेना और मुह खोल कर गले में डाल देना , और फिर थोड़ी देर चुप होके बैठ जाना तो ये हल्दी गले में नीचे उतर जाएगी लार के साथ ; और एक खुराक में ही सब बीमारी ठीक होगी दुबारा डालने की जरुरत नही । ये छोटे बच्चों को  जरुर करना ; बच्चों को टोन्सिल जब बहुत तकलीफ देते है न तो हम ऑपरेशन करवाके उनको कटवाते है ; वो करने की जरुरत नही है हल्दी से सब ठीक होता है ।*

*गले और छाती से जुडी हुई कुछ बीमारिया है जैसे खासी ; इसका एक इलाज तो कच्ची हल्दी का रस है जो गले में डालने से तुरंत ठीक हो जाती है चाहे कितनी भी जोर की खासी हो । दूसरी दावा है अदरक , ये जो अदरक है इसका छोटा सा टुकड़ा मुह में रख लो और टाफी की तरह चुसो खासी तुरंत बंद हो जाएगी ।
अगर किसीको खासते खासते चेहरा लाल पड़ गया हो तो अदरक का रस ले लो और उसमे थोड़ा पान का रस मिला लो दोनों एक एक चम्मच और उसमे मिलाना थोड़ा सा गुड या शहद  । अब इसको थोडा गरम करके पी लेना तो जिसको खासते-खासते चेहरा लाल पड़ा है उसकी खासी एक मिनट में बंध हो जाएगी ।
एक अच्छी  दवा है , अनार का रस गर्म करके पियो तो खासी तुरन्त ठीक होती है । काली मिर्च है गोल मिर्च इसको मुह में रख के चबालो , पीछे से गरम पानी पी लो तो खासी बंध हो जाएगी, काली मिर्च को चुसो तो भी खासी बंध हो जाती है ।*

*छाती की कुछ बिमारिया जैसे दमा, अस्थमा, ब्रोंकिओल अस्थमा, इन तीनो बीमारी का सबसे अच्छा दवा है गाय मूत्र ; आधा कप गोमूत्र पियो सबेरे का ताजा ताजा तो दमा ठीक होता है, अस्थमा ठीक होता है, ब्रोंकिओल अस्थमा ठीक होता है । और गोमूत्र पिने से टीबी भी ठीक हो जाता है , लगातार 5..6 महीने पीना पड़ता है ।
दमा अस्थमा का और एक अच्छी दवा है दालचीनी, इसका पाउडर रोज सुबह आधे चम्मच खाली पेट गुड या सेहद मिलाके गरम पानी के साथ लेने से दमा अस्थमा ठीक कर देती है ।

Friday, 9 March 2018

खेचरी मुद्रा

खेचरी मुद्राग्रन्थों में अनेक योग मुद्राओं का वर्णन है। इनमें से एक  मुद्रा है खेचरी।
यह मुद्राओं में सर्वश्रेष्ठ है। इसमें जीभ को मोड़कर, तालु के पीछे ,ऊपर की ओर स्थित विवर में जीभ के अग्र भाग को लगाया जाता है। हमारे ब्रह्मरन्ध्र से एक रस  24 घन्टे टपकता है जिसे अमृत भी कहा जाता है, जो हमारी नाभि में स्थित अग्नि में जाकर नष्ट हो जाता है। 
खेचरी मुद्रा द्वारा इस रस का पान किया जाता है। जो योगी 6 महीने निरन्तर इस मुद्रा  का अभ्यास करता है, वह अपनी इच्छा से शरीर का त्याग करता है। किसी भी विष का प्रभाव उसके शरीर पर नहीं होता। हिंसक जानवर उसको हानि नहीं  पहुचाते। इससे रसानन्द समाधि का लाभ होता है, जो शीघ्र ही सहज समाधि में बदल  जाता है। अनेक विभूतियाँ ऐसे योगी को प्राप्त हो जाती हैं। चलते समय लगता है कि शरीर, जमीन से ऊपर चल रहा है अर्थात् शरीर बहुत हल्का हो जाता है। इस मुद्रा को करने के लिए अनेक गुरु छेदन का उपयोग करते हैं। छेदन में जिह्वा के नीचे स्थित  तन्तु को ब्लेड से हल्का सा काट देते हैं, इसके बाद चालन- दोहन  किया जाता है। छेदन की अपनी हानियाँ भी हैं। कुछ अन्य तरीके भी हैं  जिससे महीने में  ही खेचरी लग जाती है। जब योगी चाहे तब इस मुद्रा  की सहायता से बिन भोजन पानी के भी आराम से रह सकता है।  इस मुद्रा को करने के 2 से 3 घन्टे बाद तक भूख नहीं लगती। ग्रन्थों में  अनेक बातें इस सम्बन्ध में कही गयी हैं, जिनमें से कुछ निम्न हैं ---
●प्रथमं लवण पश्चात् क्षारं क्षीरोपमं ततः। द्राक्षारससमं पश्चात् सुधासारमयं ततः।         
                                     -  (योग रसायनम्)
खेचरी मुद्रा के समय उस रस का स्वाद पहले लवण जैसा, फिर क्षार जैसा, फिर दूध जैसा, फिर द्राक्षारस जैसा और तदुपरान्त अनुपम सुधा, रस-सा अनुभव होता है।
●आदौ लवण क्षारं च ततस्तिक्त कषायकम्। नवनीतं धृत क्षीर दधित क्रम धूनि च। द्राक्षा रसं च पीयूषं जप्यते रसनोदकम। 
                              ---( घरेण्डसंहिता)
खेचरी मुद्रा में जिव्हा को क्रमशः नमक, क्षार, तिक्त, कषाय, नवनीत, धृत, दूध, दही, द्राक्षारस, पीयूष, जल जैसे रसों की अनुभूति होती है।
●अमृतास्वादनाछेहो योगिनो दिव्यतामियात्।      जरारोगविनिर्मुक्तश्चिर जीवति भूतले ।।
                              --- (योग रसायनम्)
भावनात्मक अमृतोपम स्वाद मिलने पर योगी के शरीर में दिव्यता आ जाती है और वह रोग तथा जीर्णता से मुक्त होकर दीर्घकाल तक जीवित रहता है।
एक योग सूत्र में खेचरी मुद्रा से अणिमादि सिद्धियों की प्राप्ति का उल्लेख है-
●तालु मूलोर्ध्वभागे महज्ज्योति विद्यतें तर्द्दशनाद् अणिमादि सिद्धिः।
तालु के ऊर्ध्व भाग में महा ज्योति स्थित है, उसके दर्शन से अणिमादि सिद्धियाँ प्राप्त होती है।
ब्रह्मरन्ध्र साधना की खेचरी मुद्रा प्रतिक्रिया के सम्बन्ध में शिव संहिता में इस प्रकार उल्लेख मिलता है-
● ब्रह्मरंध्रे मनोदत्वा क्षणार्ध मदि तिष्ठति । सर्व पाप विनिर्युक्त स याति परमाँ गतिम्॥
अस्मिल्लीन मनोयस्य स योगी मयि लीयते। अणिमादि गुणान् भुक्तवा स्वेच्छया पुरुषोत्तमः॥
एतद् रन्ध्रज्ञान मात्रेण मर्त्यः स्सारेऽस्मिन् बल्लभो के भवेत् सः। पपान् जित्वा मुक्तिमार्गाधिकारी ज्ञानं दत्वा तारयेदद्भुतं वै॥
अर्थात्- 
ब्रह्मरन्ध्र में मन लगाकर खेचरी मुद्रा की साधना करने वाला योगी आत्मनिष्ठ हो जाता है। पाप मुक्त होकर परम गति को प्राप्त करता है। इस साधना में मनोलय होने पर साधक ब्रह्मलीन हो जाता है और अणिमा आदि सिद्धियों का अधिकारी बनता है।
●न च मूर्च्छा क्षुधा तृष्णा नैव लस्यं प्रजायते। न च रोगो जरा मृत्युर्देव देहः स जायते॥
                                     --(घेरण्ड सहिंता )
खेचरी मुद्रा की निष्णात देव देह को मूर्च्छा, क्षुधा, तृष्णा, आलस्य, रोग, जरा, मृत्यु का भय नहीं रहता।
●लवण्यं च भवेद्गात्रे समाधि जयिते ध्रुवम। 
कपाल वक्त्र संयोगे रसना रस माप्नुयात।
शरीर सौंदर्यवान बनता है। समाधि का आनन्द मिलता है। रसों की अनुभूति होती है। खेचरी मुद्रा का प्रकार श्रेयस्कर है।
                                                          
                                  ----- ॐ ,शिवोsहम्
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Wednesday, 7 March 2018

अनुलोम-विलोम प्राणायाम


अनुलोम-विलोम प्राणायाम
अन्य नाम
इस प्राणायाम में सांस नासिका की मदद से नियंत्रित की जाती है। यह एकाग्रता और विचारों के उच्च स्तर को पाने में मन को प्रोत्साहित करता है। भौतिक शरीर को अधिक ऊर्जा और ऑक्सीजन देता है और अपने तंत्रिकाओं को शांत और रक्त परिसंचरण में सुधार में मदद करता है।
कैसे करें ??
•अंगूठे के साथ अपने दाहिनी नासिका पकडिये और बाईं नासिका से सांस लीजिए।
•अब अनामिका अंगुली से बाईं नासिका को बंद करो और दाहिनी नासिका खोलिए और सांस बाहर छोडिये। अब दाहिनी नासिका से ही सांस लीजिए।
•फिर बाईं नासिका खोलिए और सांस बाहर छोडिये। जिस नासिका से सांस बाहर छोड़ते हैं उसी से अंदर लेना है |
लाभ:
दिल की समस्याएं, उच्च रक्तचाप, तुला स्नायुबंधन, पक्षाघात, तंत्रिका संबंधित, अवसाद, माइग्रेन, अस्थमा, साइनस, एलर्जी अनुलोम-विलोम से ठीक किया जा सकता है।
सावधानिया:
यदि आप पहली बार ऐसा कर रहे हैं तो यह आराम से और थोडा किया जाना चाहिए।
उच्च रक्तचाप के मरीजों को सांस थामे रखने से बचना चाहिए।

भस्‍त्र‍िका प्राणायाम


भस्‍त्र‍िका प्राणायाम
भस्‍त्र‍िका संस्कृत शब्द भस्‍त्र से बना है, जिसका अर्थ है ‘धौंकनी’ । इस प्राणायाम में, जल्दी‑जल्दीऔर ज़ोर लगाकर अत:श्वसन और उच्‍छ्वसन द्वारा धौंकनी की प्रक्रिया की नकल करते हैं ।
भस्‍त्र‍िका प्राणायाम करें —
प्रारंभिक स्थिति — पदमासन, अर्धपदमासन या किसी भी ध्यानस्‍थ स्थिति में बैठें । शरीर को सीधा रखें ।आरामदायक आसन में सीधे बैठें।
1. अब नासाछिद्रों द्वारा बल लगाकर साँस
अंदर लें और बाहर छोड़ें । दोनों नाक के माध्यम से गहरी श्वास लें और तेजी से साँस छोडें।
2. श्वास पेट के मध्य और निचले भागों के इस्तेमाल से नाक के माध्यम से साँस छोडें।
3. बलपूर्वक साँस लेने और छोड़ने को दस की गिनती तक जारी रखें ।
4. अत में, श्‍वास बाहर छोड़ने के बाद गहरा श्‍वास लें और धीरे‑धीरे श्‍वास छोड़े । यह
भस्‍त्र‍िका प्राणायाम का एक चक्र है ।
निम्नलिखित बिंदुओ को याद रखें —
क्‍या करें क्‍या न करें
• प्रत्येक बार श्‍वास लेते और छोड़ते समय फेफड़ों, डायफ्राम और पेट को गतिशील करें ।
• छाती और कंधे नहीं हिलने चाहिए ।
• अत्यधिक गरम परिस्थितियों में यह अभ्यास न करें ।
लाभ-
• यह भूख में सुधार करता है ।
• यह कफ़ को नष्‍ट करता है ।
• यह अस्थमा में लाभकारी होता है ।
• यह रक्‍त प्रवाह में ऑक्सीजन और कार्बन डाइऑक्साइड के आदान-प्रदान में वदृधि करता है ।
•भस्त्रिका करने से फेफड़ों के लिए भरपूर मात्रा में ऑक्सीजन की आपूर्ति होती है।
• यह श्वसन प्रणाली के विकारों को हटा देती है | दक्षता में सुधार और चेतना की शुद्धता को बढ़ाती है |
•शरीर में गर्मी पैदा करता है और भूख बढ़ जाती है |
•भस्त्रिका पाचन तंत्र, मधुमेह, साइनस आदि के लिए उपयोगी है |
सीमाएँ(सावधानी-)
• हृदय रोगों, उच्च रक्‍तचाप, चक्कर आना, पेट के अल्सर से पी‍ड़त व्‍यक्‍त‍ियों को इस
प्राणायाम का अभ्यास नहीं करना चाहिए ।
•आप धौंकनी की अपनी प्रारंभिक प्रैक्टिस में श्वास बहुत दूर धकेलने के प्रलोभन से बचे |
•इसे अधिक मात्रा में करने से चक्कर आना, उनींदापन जैसी चीजें हो सकती है।

Tuesday, 6 March 2018

कपालभाती प्राणायाम

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कपालभाती प्राणायाम

अन्य नाम:-
कपाल उदय सांस, ललाट मस्तिष्क शोधन, कपालभाती
विवरण:-
कपालभाती दो शब्दों से बना है - कपाल यानि मस्तिष्क/सिर और भाती यानि चमक। यह प्राणायाम मुख्य रूप से मस्तिष्क और मस्तिष्क के तहत अंगों को अच्छी तरह से प्रभावित करता है।
कैसे करें...??
पद्मासन में बैठे |
पेट के निचले हिस्से से हल्का झटका अंदर की ओर दें और सांस नाक से बाहर फेंके | 
फिर पेट ढीला छोड़ दें | फिर हल्के झटके से सांस बाहर फेंके |
इस तरह से लयबद्ध तरीके से करिये |
लाभ:-
*यह आपको स्फूर्तिदायक बनाता है,
*शरीर में गर्मी पैदा करता है |
*बीमारी और एलर्जी से बचाता है।
सावधानी:-
*आम व्यक्ति इसे 50-100 बार कर सकते हैं। इस संख्या में वृद्धि करना उचित नहीं है।
*दिल और फेफड़ों की बीमारी से पीड़ित मरीजों को विशेषज्ञ के मार्गदर्शन में ही यह अभ्यास करना चाहिए।
*रक्त परिसंचरण/ब्लड प्रेशर से पीड़ित लोगों को बहुत सावधानी से प्रक्रिया को पूरा करना चाहिए, उन्हें भी विशेषज्ञ के मार्गदर्शन में ही यह अभ्यास करना चाहिए।

Monday, 5 March 2018

सुप्त-वज्रासन

सुप्त-वज्रासन
सुप्त का अर्थ होता है सोया हुआ अर्थात वज्रासन की स्थिति में सोया हुआ। इस आसन में पीठ के बल लेटना पड़ता है, इसिलिए इस आसन को सुप्त-वज्रासन कहते है, जबकि वज्रासन बैठकर किया जाता है।
विधि..
दोनों पैरों को सामने फैलाकर बैठ जाते है, दोनों पैर मिले हुए, हाथ बगल में, कमर सीधी और दृष्टि सामने। अब वज्रासन की स्थिति में बैठ जाते है। वज्रासन में बैठने के बाद दोनों पैरों में पीछे इतना अंतर रखते है कि नितंब जमीन से लग जाए तब धीरे-धीरे दोनों कुहनियों का सहारा लेकर जमीन पर लेट जाते है। 
दाएँ हाथ को पीछे ले जाते है और बाएँ कंधे के नीचे रखते है और बाएँ हाथ को पीछे ले जाकर दाएँ कंधे के नीचे रखते है। इस अवस्था में दोनों हाथों की कैची जैसी स्‍थिति बन जाती है, उसके बाद इसके बीच में सिर को रखते है। वापस पहले वाली अवस्‍था में आने के लिए हाथों को जंघाओं के बगल में रखते है और दोनों कुहनियों की सहायता से उठकर बैठ जाते है।
सावधानी:-
जिनको पेट में वायु विकार, कमर दर्द की शिकायत हो उन्हें यह आसन नहीं करना चाहिए। इसे खाना खाने के तुरंत बाद न करें। 
नितंब मिलने के बाद ही जमीन पर लेटे। लेटते समय जितनी आसानी से जा सकते है, उतना ही जाए। प्रारंभ में घुटने मिलाकर रखने में कठिनाई हो तो अलग-अलग रख सकते है, धीरे अभ्यास करने पर पैर को मिलाने का प्रयास करें। जमीन पर लेटते समय घुटने उपर नहीं उठने चाहिए, पूर्ण रूप से जमीन पर रखें।
लाभ:-
यह आसन घुटने, वक्षस्थल और मेरुदंड के लिए लाभदायक है।
उक्त आसन से उदर में खिंचाव होता है, इस खिंचाव के कारण उदर संबंधी नाडि़यों में रक्त प्रावाहित होकर उन्हें सशक्त बनाता है। 
इससे उदर संबंधी सभी तरह के रोगों में लाभ मिलता है। 
साथ ही पेट की चर्बी भी घटती है।