Thursday, 13 October 2016

Astang yog

(1)  यम :- 5
१ अहिंसा
२ सत्य
३ अस्तेय
४ ब्रह्मचयृ
५ अपरिगृह 

(2)  नियम :- 5
१ शौच
२ संतोष
३ तप
४ स्वाध्याय
५ ईश्बर प्राणिधान

(3.) आसन:-
                 आसन का सर्वप्रथम उद्देश्य तो स्थिर होकर कुछ घण्टे बैठ सकने का अभ्यास है।
दूसरा उद्देश्य शारीरिक अंगो और नस- नाड़ियों का ऐसा अभ्यास करना है , जिससे उनके दोष निकल कर कार्यक्षमता की वृध्दि हो सके ।

(4.)  प्राणायाम🕉:
                      यम-नियमों द्वारा अन्तः चेतना की सफाई के साथ - साथ, शरीर व मन को बलवान बनाने के लिए आसन , प्राणायाम की क्रिया सम्पन्न की जाती है ।

(5.)  प्रत्याहार🕉:- 
                   प्रत्याहार का अर्थ है - उगलना
अपने कुविचारो, कुसंस्कारों , दुःस्वभावों दुर्गुणो को निकाल बाहर करना ।
महान सम्पदा के स्वागतार्थ योग्य मनोभूमि का निर्माण।
आँख आदि इन्द्रियाँ अपने-अपने विषयों की ओर भागती है, उनको वहाँ से रोकना प्रत्याहार हे।
  
🕉(6.)  धारणा🕉:-
                    धारणा का तात्पर्य उस प्रकार के धारण करने से है ।
जिनके द्वारा मनोवाँछित स्थिति प्राप्त होती है ।
हम अपने ईष्ट की धारणा करे तो ; उनके गुण हमारे व्यवहार एंव जीवन मे उत्पन्न होने लगते हैं।

(7.)  🕉ध्यान🕉:-
                  ध्यान का तात्पर्य है , चिन्तन को एक ही प्रवाह मे बहने देना।
उसे अस्त व्यस्त उड़ानो मे भटकने में रोकना।
किसी एक ही लक्ष्य पर कुछ समय विचार करना।
नियत विषय में अधिकाधिक मनोयोग के साथ जुट जाना, तत्पर हो जाना, सारी सूध-बूध भुलाकर उसी में निमग्न हो जाना ध्यान है।

(8.)  समाधि :-
                     जब किसी बात पर भली प्रकार निर्विकल्प रूप से चित्त जम जाता है, तब अवस्था को समाधी कहा जाता है।
इस स्थिति मे विरारी मन अपनी सारी चञ्चलता के साथ एक गाढी निद्रा मे चला जाता है।

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